Sunday 6 December 2015

इंसानों की खोपड़ी को यादगार के तौर पर रखा जाता है

अंग्रेजी में इन्हें 'हैड हंटर्स' कहा जाता है. पूर्वात्तर भारत के म्यांमर के दुर्गम इलाकों में ये जनजाति निवास करती है. आज ये जनजाति थोड़ी विकसित हो चुकी है. 
आज इन्हें शिकार का नहीं, बल्कि अफ़ीम की लत लग चुकी है. इनका मुखिया अफ़ीम खा कर पड़ा रहता है. डेलीमेल के मुताबिक इनके क़बीले के 90 फीसदी लोग अफ़ीम का सेवन करते हैं.


 युद्धग्रस्त  इलाका




इस जनजाति के
इलाके में नॉर्थ ईस्ट के आंतकी संगठन और सेना के बीच लगातार संघर्ष जारी रहता है. ये इलाका युद्धग्रस्त है. गांव का नाम लोंगवा है और यहां का हर तीसरा शख़्स अफ़ीम का लती है. एक समय था जब अपने व्यापार का विस्तार करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के शासकों ने चीन के लोगों को अफ़ीम की लत लगा दी थी. चीन ने युद्ध किया और इस नशे के व्यापार को बंद करने की ठानी 

क्योंकि इससे चीन के युवा नकारा हो रहे थे, देश बेकारी के दौर में पहुंच गया था. फ़िलहाल इस जनजाति का भी यही हाल है, यहां लोग नशे के लिए अपने घरों का सामान बेच रहे हैं. परिवारजनों को खाना नहीं मिल रहा, लेकिन नशे की लत ने सब चिंताओं से मुक्त कर मात्र नशे की दुनिया की चिंता करने पर मजबूर कर दिया है

ऑस्ट्रेलियन फ़ोटोगाफ़र ने खींची तस्वीरें  


खोपड़ी को सहेजने वाला किस्सा सुनने के बाद ऑस्ट्रेलियन फ़ोटोग्राफ़र राफेल कोरमन ने इस गांव का दौरा किया. साल 1960 के बाद से ही यहां हेड हंटिंग तो बंद हो चुकी है लेकिन गांव के लोगों को नशे की हालत में देख कर कोरमन दंग रह गये. 



तस्वीरों से गांव के नौजवानों और बुजुर्गों की हालत बयां हो रही है. अंग्रेज़ों ने भारत में अफ़ीम की खेती की शुरुआत की थी. पहले 90 प्रतिशत गांवों के लोग अफ़ीम की लत के शिकार थे लेकिन अब 30 प्रतिशत लोग ही इसकी जकड़ में हैं. ये आंकडे डेलीमेल के हैं.