आज तक आपने घोडों का मेला, बैलों का मेला, यहां तक कि सांपों के मेले के बारे में सुना होगा। लेकिन एक जगह ऎसी भी है जहां भूतों की मेला लगता है। मिर्जापुर अहरौरा के बरही गांव में बेचुबीर की चौरी पर भूतों का मेला लगता है। इस मेले में इंसानों की नहीं भूत, चुडैल और डायनों का जमावडा लगता है।
अंधविश्वास का यह खेल सरेआम पुलिसवालों के सामने होता है,
लेकिन इसे रोकने के लिए कोई आगे नहीं आता। तकनीकी और सूचना क्रांति के दौर में हम भले ही अंतरिक्ष और चांद पर घर बसाने को सोच रहे हों, लेकिन अंधविश्वास अभी भी हमारा पीछा नहीं छो़ड रहा है। अंधविश्वास के इस मेले में भूतों की भी़ड लगती है, जहां पर कथित तौर पर भूत, डायन और चु़डैल से मुक्ति दिलाई जाती है। ये मेला जो लगभग 350 सालों से चला आ रहा है। भूत-प्रेत जैसी बाधाओं से परेशान लोगों की भीड जुटती है। लोग अंधविश्वास के घेरे में इस कदर फंसे हैं कि कोई कहता है उनके सिर पर पडोसी ने भूत बैठा दिया है तो किसी को सन्नाटे में भूत ने पकड लिया है। किसी को श्मशान के पास से गुजरते वक्त भूत सवार हो गया है।
अंधविश्वास के इस मेले में फरियादी तो इंसान होता है लेकिन उनका कहना होता है कि उन पर कब्जा भूत, चुडैल, डायन जैसे लोगों का होता है। उन्हें सिर्फ बेचूबीर बाबा ही मुक्ति दिला सकते हैं। तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले में काफी दूर-दूर से लोग आते है। यहां तक की प्रदेश के बाहर से भी आने वालों का काफी जमावडा रहता है। आज भी बेचुबाबा के समाधि की देखभाल उनके छह वंशज ही करते हैं। ऎसी मान्यता है कि बेचूबीर भगवान शंकर के साधना में हमेशा लीन रहते थे। परम योद्धा लोरिक इनका परम भक्त था।
एक बार लोरिक के साथ बेचुबीर इस घनघोर जंगल में ठहरे थे और भगवान शिव की आराधना में लीन थे। तभी उनके ऊपर एक शेर ने हमला कर दिया। तीन दिनों तक चले इस युद्ध में बेचूबीर ने अपने प्राण त्याग दिया और उसी जगह पर बेचूबीर की समाधि बन गई। तभी से यहां मेला लगता है जो तीन दिनों तक चलता है। जहां भूत, प्रेत के अलावा नि:संतान लोग भी आते हैं। मेले में सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस भी लगाई जाती है। मेले की सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस और पीएसी लगाई गई है। -
यह पोस्ट khaskhabar.com से लिया गया है
अंधविश्वास का यह खेल सरेआम पुलिसवालों के सामने होता है,
लेकिन इसे रोकने के लिए कोई आगे नहीं आता। तकनीकी और सूचना क्रांति के दौर में हम भले ही अंतरिक्ष और चांद पर घर बसाने को सोच रहे हों, लेकिन अंधविश्वास अभी भी हमारा पीछा नहीं छो़ड रहा है। अंधविश्वास के इस मेले में भूतों की भी़ड लगती है, जहां पर कथित तौर पर भूत, डायन और चु़डैल से मुक्ति दिलाई जाती है। ये मेला जो लगभग 350 सालों से चला आ रहा है। भूत-प्रेत जैसी बाधाओं से परेशान लोगों की भीड जुटती है। लोग अंधविश्वास के घेरे में इस कदर फंसे हैं कि कोई कहता है उनके सिर पर पडोसी ने भूत बैठा दिया है तो किसी को सन्नाटे में भूत ने पकड लिया है। किसी को श्मशान के पास से गुजरते वक्त भूत सवार हो गया है।
अंधविश्वास के इस मेले में फरियादी तो इंसान होता है लेकिन उनका कहना होता है कि उन पर कब्जा भूत, चुडैल, डायन जैसे लोगों का होता है। उन्हें सिर्फ बेचूबीर बाबा ही मुक्ति दिला सकते हैं। तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले में काफी दूर-दूर से लोग आते है। यहां तक की प्रदेश के बाहर से भी आने वालों का काफी जमावडा रहता है। आज भी बेचुबाबा के समाधि की देखभाल उनके छह वंशज ही करते हैं। ऎसी मान्यता है कि बेचूबीर भगवान शंकर के साधना में हमेशा लीन रहते थे। परम योद्धा लोरिक इनका परम भक्त था।
एक बार लोरिक के साथ बेचुबीर इस घनघोर जंगल में ठहरे थे और भगवान शिव की आराधना में लीन थे। तभी उनके ऊपर एक शेर ने हमला कर दिया। तीन दिनों तक चले इस युद्ध में बेचूबीर ने अपने प्राण त्याग दिया और उसी जगह पर बेचूबीर की समाधि बन गई। तभी से यहां मेला लगता है जो तीन दिनों तक चलता है। जहां भूत, प्रेत के अलावा नि:संतान लोग भी आते हैं। मेले में सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस भी लगाई जाती है। मेले की सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस और पीएसी लगाई गई है। -
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