Saturday 28 November 2015

44 साल पहले क्यों हरे कपड़े से ढका गया था ताज

आगरा. ताज महल की खूबसूरती ही कुछ ऐसी है कि लोग सात समंदर से उसका दीदार करने हिंदुस्तान खिंचे चले आते हैं। रोज यहां हजारों की तादाद में विदेशी पर्यटक आते हैं। प्यार करने वाले जिंदगी में एक बार ताज की पनाह में जरूर आना चाहते हैं। इससे जुड़े कुछ बेहद दिलचस्प किस्से हैं, जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
लड़ाकू विमानों से बचाने के लिए ढका गया था ताज महल
दि्वतीय विश्‍व युद्ध के दौरान ताज महल को खतरा पैदा
हो गया था। उस वक्‍त ब्रिटेन ने अमेरिकी सेना के सहयोग से ताज महल को बांस और बल्लियों से पूरी तरह ढकवा दिया था। इससे जापान और जर्मनी के युद्धक विमानों को धोखा देने की कोशिश की गई थी। भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण (एएसआई) के आगरा सर्किल ऑफिस की लाइब्रेरी में साल 1942 में खींची गई तस्‍वीरें मौजूद हैं।
मित्र देशों को मिली हमले की जानकारी
एएसआई के अधीक्षण पुरातत्‍ववि‍द् भुवन विक्रम बताते हैं कि दि्वतीय विश्‍व युद्ध के समय मित्र देशों अमेरिका, ब्रिटेन और अन्‍य को खुफिया सूचना मिली थी कि जापान और जर्मनी ताज महल पर बम गिराने वाले हैं। इसके बाद तुरंत ताज महल पर बांस और बल्लियों का आवरण चढ़ा दिया गया था। इसकी तस्वीरें भी ली गईं थीं।
1971 में हरे कपड़े से ढका गया था ताज
आजादी के बाद भारत-पाकिस्‍तान युद्ध के दौरान साल 1971 में ताज महल पर खतरा मंडराने लगा था। उस वक्‍त ताज महल को हरे कपड़े से ढका गया था ताकि पाकिस्‍तानी विमानों को ताज महल की जगह हरियाली नजर आए। यह खतरा इसलिए भी था कि पाकिस्‍तानी विमानों ने ताज महल से करीब 10 किमी. दूर एयरफोर्स स्‍टेशन पर बम गिराए थे। हालांकि इस दौरान सुरक्षा के लिहाज से तस्‍वीरें नहीं ली गई थीं।
7 लाख में अंग्रेजों ने बेच दिया था ताज महल
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिए मोहब्बत की इस निशानी को बेच दिया था। वो ताज महल तोड़कर इसके कीमती पत्थरों को ब्रिटेन लेकर जाना चाहते थे। बाकी संगमरमर के पत्थरों को बेचकर सरकारी खजाना भरने की फिराक में थे। साल 1828 में तत्‍कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक ने कोलकाता के अखबार में टेंडर भी जारी किया था।
नीलामी में रखी गई थी शर्त
ब्रिटिश हुकूमत के समय राजधानी कोलकाता हुआ करती थी। तब एक अंग्रेजी दैनिक अखबार में 26 जुलाई, 1831 के अंक में ताज महल को बेचने की एक विज्ञप्ति प्रकाशित की गई थी। उस समय ताज महल को मथुरा के सेठ लक्ष्‍मीचंद ने सात लाख की बोली लगाकर इसे खरीद लिया था। नीलामी में ये भी शर्त थी कि इसे तोड़कर इसके खूबसूरत पत्थरों को अंग्रेजों को सौंपना होगा। सेठ का परिवार आज भी मथुरा में रहता है।
रद्द करनी पड़ी ताज महल की नीलामी
इतिहासकार प्रो. रामनाथ ने 'दि ताज महल' किताब में इस घटना का विवरण दिया है। उसके अनुसार, ताज महल के पुराने सेवादारों को अंग्रेजी हुकूमत के विनाशकारी आदेश की भनक लग गई थी। खबर आग की तरह फैली और लंदन तक चली गई। लंदन में एसेंबली में नीलामी पर सवाल उठे। तब गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक को ताज महल की नीलामी रद्द करनी पड़ी
शाहजहां ने नहीं बनवाई थी मशहूर डायना बेंच
ताज महल में एक खास बेंच है। सेंट्रल टैंक पर स्थित इस बेंच को डायना बेंच कहा जाता है। इस पर बैठकर फोटो खिंचवाने के लिए सारे पर्यटक बेकरार रहते हैं, लेकिन ये बेंच शाहजहां ने नहीं बनवाई थी। इतिहासकार रविंद्र राठौर बताते हैं कि जब ब्रिटिश वायसराय लार्ड कर्जन ताज महल पहुंचे थे, उस वक्‍त ताज महल के सामने ऊंचे-ऊंचे पेड़ थे। ऐसे में दूर से उसे देखने में उन्हें दिक्कत हो रही थी। ये बात 18 अप्रैल, 1902 की है। तब लॉर्ड कर्जन ने अहम बैठक कर ताज महल के बगीचे को सुधारने का आदेश दिया। इसके बाद पेड़ कटवाए गए, ताकि ताज महल बेहतर दिख सके।
किसे कहते हैं गोल्डन फाइल
इसके बाद बैठने के लिए ताज महल के सामने सेंट्रल टैंक वाले चबूतरे पर संगमरमर के स्‍लैब लगवाए गए। इसे ही अब 'डायना बेंच' कहते हैं। ये क्षेत्रीय अभिलेखागार की फाइल नंबर 1/899-1904 में 200 पृष्‍ठों में अंकित है। आगरा के लिए ये फाइल बीती सदी की 'गोल्‍डन फाइल' कहलाती है। बाद में प्रिंस चार्ल्स की दिवंगत पत्‍नी डायना ने इस पर बैठकर तस्‍वीरें खिंचवाईं। उसी के बाद से ये बेंच डायना बेंच के नाम से मशहूर हो गई।

466 किलो सोने का था ताज महल का कलश
ताज महल के निर्माण के समय बादशाह शाहजहां ने इसके शिखर पर सोने का कलश लगवाया था। इसकी लंबाई 30 फीट 6 इंच लंबी थी। कलश में 40 हजार तोला (466 किलोग्राम) सोना लगा था। इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि ताज महल का कलश तीन बार बदला गया। आगरा के किले को साल 1803 में हथियाने के बाद से ही अंग्रेजों की नजर ताज महल पर थी।

अंग्रेजों ने उतरवा दिया कलश
साल 1810 में अंग्रेजी सेना के अफसर जोसेफ टेलर ने ताज महल के शिखर पर लगा सोने का कलश उतरवा दिया। उसकी जगह वैसा ही दिखने वाला सोने की पालिश किया हुआ तांबे का कलश वहां लगवा दिया था। अगर स्‍वर्ण कलश आज भी वहां लगा होता तो उसकी कीमत 137 करोड़ रुपए होती। इसके बाद साल 1876 और फिर 1940 में ताज महल के कलश बदले गए।
कलश पर बना है चंद्रमा
मौजूदा कलश कांसे का है। इतिहासकार राजकिशोर राजे ने लिखा है कि मेहमानखाने के सामने फर्श पर बनी कलश की अनुकृति साल 1888 में नाथूराम नाम के कलाकार ने बनाई थी। ताज महल के निर्माण के समय बादशाह शाहजहां ने खासतौर पर लाहौर के निवासी काजिम खान को आगरा बुलाया था। उन्होंने ही सोने का कलश तैयार किया था। इस कलश पर चंद्रमा बना है।
ताज महल के मेहमानखाने में अंग्रेजी जोड़े मनाते थे सुहागरात
ताज महल के मुख्‍य स्‍मारक के एक तरफ लाल रंग की मस्जिद है और दूसरी तरफ मेहमानखाना। ब्रिटिश शासन के दौरान मुख्‍य स्‍मारक के बगल का मेहमानखाना किराए पर दिया जाता था। इसमें नवविवाहित अंग्रेज जोड़े सुहागरात मनाते थे। उस वक्त इसका किराया काफी महंगा था।
इतिहासकार राजकिशोर राजे ने अपनी किताब 'तवारीख-ए-आगरा' में लिखा है कि ताज महल के मेहमानखाने की पहली मंजिल पर पहले दीवारें बंद नहीं थी। अंग्रेजों के समय में इसमें दीवारें जोड़ी गईं और उन्हें कमरों में तब्‍दील कर दिया गया था। इसे अंदर से बेहद खूबसूरत बनाया गया था।



कब्र के ऊपर टंगा लैंप दिलाता है मिस्र की याद
ताज महल में शाहजहां और मुमताज की कब्र के ठीक ऊपर खूबसूरत लैंप टंगा हुआ है। ये लैंप मिस्त्र के सुल्‍तान बेवर्सी दि्तीय की मस्जिद के लैंप की नकल है। इसे तैयार करवाने में 108 साल पहले 15 हजार रुपए खर्च हुए थे। इससे पहले यहां धुएं वाला लैंप जलता था। इससे पूरे मकबरे में धुआं भर जाता था। तत्‍कालीन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन जब 18 अप्रैल, 1902 को आगरा आए थे। उस वक्‍त जब वह मकबरे में गए तो वहां धुएं से उन्‍हें काफी परेशानी हुई।
भारत में नहीं मिला कारीगर
इतिहासकार राजकिशोर राजे कहते हैं कि कर्जन ने बेहतरीन बिना धुएं वाला खूबसूरत लैंप तलाश करने का आदेश दे दिया, लेकिन भारत में अंग्रेजों को कोई बेहतरीन कारीगर नहीं मिला। इसके बाद उन्हें मिस्त्र का सुल्‍तान बेवार्सी दि्तीय की मस्जिद का लैंप ताज महल के लिए भा गया। सुल्तान के निर्देश पर इसकी प्रतिकृति वहां के कारीगर तोदरस वादिर ने बनाई। ऐसे छोटे-बड़े कई लैंप तैयार करवाए गए।
लैंप पर है सोने-चांदी की नक्काशी
कांसे के बने इस लैंप पर सोने-चांदी की नक्‍काशी है। उस वक्‍त 15 हजार की लागत से ये लैंप तैयार हुए थे। ये लैंप 18 फरवरी, 1906 को ताजमहल में पहली बार प्रज्‍ज्वलित किया गया था। इसके लिए बड़े पैमाने पर समारोह आयोजित किया गया था। उसमें भारत के रियासतों के राजा और अंग्रेज अफसर शामिल हुए थे।