Tuesday 3 November 2015

हजारों आत्महत्याओं की खौफ़नाक दास्तां

खौफ का कोई चेहरा नहीं होता, खौफ किसी की आँखों में होता है, किसी के चेहरे पर, किसी के नाम में और किसी की बातों में भी हो सकता है. खौफ की नजर का असर
देखिए कि वह हजारों लोगों को एक साथ मौत के घाट उतार सकती है वह भी बिना कोई चोट किए. दुनिया के इतिहास में इतनी बर्बरता की न उम्मीद, न गुंजाइश कभी किसी ने समझी थी. दुनिया की सोच से बहुत आगे, बहुत भयानक थी वह कहानी जिसे इतिहास शायद ही कभी भुला पाए.

उनकी दुनिया में वह अकेला बादशाह था. कहने को तो बादशाह लेकिन असल में उसकी बादशाहत कईयों के लिए शैतानियत का घर था. धीरे-धीरे उसका असर बढ़ना शुरू हुआ था लेकिन उस दिन तक वह इतना बढ़ चुका था कि उसका नाम भी आने से कोई मरने तक को तैयार हो जाए…और एक दिन आखिर वह घड़ी आ ही गई जब वे खौफ से हारकर मरने को तैयार हो गए. बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती. उस बादशाह की शैतानियत में मरने से ज्यादा आसान उन्हें खुद मर जाना लगा और हजारों लोगों ने एक साथ आत्महत्या कर ली.वह 1945 का साल था. विश्व इतिहास में काले इतिहास का एक साल अगर इसे कहा जाए तो गलत नहीं होगा. यह वह साल था जिसमें कई काले दिन और कई बर्बर कहानियां बनीं लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के आख़िरी दिनों में वह जो कहानी थी वह अब तक की सबसे काली (क्रूर) कहानियों में एक है. एक क्रूर बादशाह के डर से पूरे प्रदेश ने आत्महत्या कर ली. शायद आप ऐसे किसी बादशाह की बादशाहत मानने से ज्यादा उसे मार डालना चाहेंगे, शायद वे भी यही चाहते होंगे लेकिन कर न सके.
अप्रैल 1945 में बर्लिन में 3881 और मई में 977 लोगों ने समूह आत्महत्या कर ली. सबसे ज्यादा दुर्दांत केस तो डेमिन का है जहां कुल आबादी के 5 प्रतिशत लोगों ने साइनाइड की कैप्सूल खाकर एक साथ आत्महत्या कर ली. विश्वयुद्ध के अंतिम सप्ताह में हजारों की संख्या में जर्मनी में लोगों द्वारा इस समूह आत्महत्या की खबर जर्मनी के साथ-साथ दुनिया को सहमा देने वाली थी.

ग्रुप आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह थी लाल सेना (नाजी सेना). हिटलर और नाजियों की उसकी लाल सेना यहूदियों को चुन-चुनकर मार रही थी. औरतों के साथ बलात्कार, बच्चों, बूढों समेत सैकड़ों की संख्या में लोगों को ज़िंदा जला दिया जा रहा था या गोली मार दी जा रही थी. विश्वयुद्ध के अंतिम सप्ताह में जर्मनी के हारने की खबरों ने लोगों को और भी ज्यादा भयभीत कर दिया था.

कुल मिलाकर यह पूरा का पूरा समुदाय नाजियों द्वारा की जा रही क्रूर हत्याओं, बलात्कार और टॉर्चर से त्रस्त हो चुका था. कई ऐसे भी थे जो जेल नहीं जाना चाहते थे, कुछ विश्व युद्ध में जर्मनी की हार से डरे थे और कुछ ने हिटलर के प्रभाव में आत्महत्या कर ली. कई लोगों ने पानी में कूदकर पर ज्यादातर ने साइनाइड की गोली खाकर ही आत्महत्या की थी. ऐसा माना जाता है लोगों को यह साइनाइड कैप्सूल हिटलर की तरफ से बांटा गया था. पानी में डूबने वालों की लाशें लम्बे समय तक बाहर निकाली जाती रहीं. इस तरह यह घटना इतिहास में एक दुर्दांत घटना के रूप में हमेशा के लिए दर्ज हो गई.