Friday 6 November 2015

मर कर भी जिंदा कर देती है ये खास तकनीक,

मौत… एक ऐसा अक्षर जो हमें अपनी जिंदगी के अंत तक ले आता है, जो हमें एक ऐसा पहलू दिखाता है जिसे हम चाह कर भी नजरअंदाज नहीं कर सकते. जिसने जन्म लिया है उसे एक दिन मरना ही है. इंसान अपने अंत से बच नहीं सकता. 

यह जीवन की वो कढ़वी सच्चाई है जिसे
हमें झेलना ही पड़ता है. लेकिन यदि कोई आकर आपसे ये कहे कि वो आपके दुख को कम करके आपकी मौत को मात दे सकता है व आपको सालों तक जिंदा रख सकता है तो क्या आप यकीन करेंगे?

जी नहीं, हम किसी भी तंत्र-मंत्र या अन्य प्रकार के अंधविश्वास पर रोशनी नहीं डाल रहे हैं बल्कि आज हम आपका परिचय विज्ञान की एक ऐसी तकनीक से कराएंगे जिसे जान आप अचंभित हो जाएंगे. क्रायोप्रिजर्वेशन, एक ऐसी तकनीक है जिसके अंतर्गत डॉक्टर व वैज्ञानिक किसी भी जानवर, पशु-पक्षी और यहां तक कि इंसानों को भी सालों तक जीवित रख सकते हैं और उन्हें मरने से बचा सकते हैं.
क्या है क्रायोप्रिजर्वेशन?

विस्तार से बताएं तो क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक के अंतर्गत इंसान के शरीर की कोशिकाओं व ऊतकों को निष्क्रिय कर बेहद कम तापमान में सालों तक परिरक्षित रखा जाता है. तापमान इतना कम होता है कि आम इंसान इसमें एक पल भी ठहर नहीं सकता लेकिन इसी तापमान में वैज्ञानिक इंसानी शरीर को सालों तक सुरक्षित रखते हैं.


मान लीजिए, किसी को कोई ऐसी बीमारी हो गई है जो लाइलाज है, पर वैज्ञानिक इसका इलाज ढूंढ़ रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि अगले 20 से 30 सालों में इसका समाधान निकाल लिया जाएगा. लेकिन तब तक मरीज जिंदा रहे इसकी संभावना बहुत ही कम है लेकिन क्रायोप्रिजर्वेशन वह तरीका है जिसके माध्यम से वह मरीज खुद को बचा सकता है.
जब तक बीमारी का इलाज सामने नहीं आता तब तक मरीज अपना क्रायोप्रिजर्वेशन करवा सकता है. जब उसकी बीमारी का इलाज खोज लिया जाएगा तो उसे वापस वैसा ही कर दिया जाएगा जैसा वह पहले था. क्रायोप्रिजर्वेशन की इस प्रक्रिया के अंतर्गत इंसान का केवल मस्तिष्क काम करता रहता है यानि कि इसके अलावा कोई भी अंग अपने होश में नहीं रहता.
अब आप सोच रहे होंगे कि यह बातें सच हो सकती हैं लेकिन हो ना हो यह अभी भी आपके लिए कल्पना की तरह है. पर एक रिपोर्ट की मानें तो कई लोगों ने इस प्रक्रिया के लिए पंजीकरण करवा लिया है जिनमें प्रसिद्ध मॉडल व अभिनेत्री पेरिस हिल्टन भी शामिल हैं. पंजीकरण करवाने वालों की अबतक लंबी सूचि तैयार हो चुकी है.
इस रोचक तकनीक को सफल बनाने के लिए अमेरिका में दो संगठन काम में जुटे हुए हैं- ‘द क्रायोनिक्स इंस्टीट्यूट’ (मिशिगन के क्लिंटन शहर में स्थित है) और ‘एल्कॉर’ (एरिजोना के स्कॉट्सडेल शहर में स्थित है).

इंसान को एक नई जिंदगी देने की कहानी यहीं खत्म नहीं होती. इन सबके बीच एक रोचक बात और है कि क्रायोनिक्स के अंतर्गत इंसान की फिर से ज़िंदा होने की इच्छा को दो तरीकों से पूरा किया जाता है. पहली तकनीक जिसका वर्णन हम कर चुके हैं और दूसरी तकनीक है जिसमें इंसान के केवल सिर को ही क्रायोप्रिजर्व्ड किया जाता है. इसमें उसके सिर को शरीर से अलग किया जाता है. ऐसी तकनीक वो शख्स जरूर अपनाना चाहेगा जो फिलहाल बूढ़ा हो गया है और इस तकनीक के जरिये जब सालों बाद वापस जिंदा होगा तो विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली होगी कि उसके दिमाग के लिए एक नया शरीर भी तैयार होगा. इन दोनों तकनीकों पर काम करने के लिए यह संस्था जितना पैसा मांगती है वो आम इंसान के बजट से कोसो दूर है. सरल शब्दों में कहें तो अब जिंदगी भी अमीर ही खरीद पाएंगे.

आखिर कैसे किया जाता है क्रायोप्रिजर्वेशन
जैसे ही व्यक्ति का दिल धड़कना बंद करता है और कानूनी परिभाषा के हिसाब से उसे मृत घोषित कर दिया जाता है तो शरीर को क्रायोप्रिजर्व्ड करने वाली टीम अपना काम शुरु कर देती है. सबसे पहले उस शरीर को बेहद कम तापमान में रख दिया जाता है और उसके दिमाग में पर्याप्त खून भेजने की प्रक्रिया शुरु की जाती है. इसके साथ ही जिस जगह पर उस व्यक्ति की मौत हुई है वहां से क्रायोप्रिजर्वेशन सेंटर ले जाने के रास्ते में उसके शरीर को ढेर सारे इंजेक्शन दिये जाते हैं ताकि दिमाग में खून के थक्के न बनने लगें.
मृत शरीर को सेंटर में लाते ही उस शरीर में मौजूद 60 फीसदी पानी को बाहर निकाल दिया जाता है क्योंकि यह पानी कोशिकाओं के भीतर जम ना जाए. यदि ऐसा हुआ तो कोशिकाओं को नुकसान पहुंचेगा और इसके साथ ही धीरे-धीरे ऊतक, शरीर के अंग व अंत में पूरे शरीर के नष्ट हो जाने का खतरा बन जाता है.
शरीर से सारा पानी निकालने के बाद उसकी जगह शरीर पर क्रायोप्रोटेक्टेंट नामक रसायन भर दिया जाता है. यह रसायन कम तापमान पर जमता नहीं है और इसलिए कोशिका उसी अवस्था में सुरक्षित रहती है. इस प्रक्रिया को विट्रीफिकेशन कहा जाता है.

इसके बाद शरीर को बर्फ की मदद से -130 डिग्री तापमान तक ठंडा किया जाता है. अगला कदम होता है शरीर को तरल नाइट्रोजन से भरे एक टैंक में रखना. यहां तापमान -196 डिग्री रखा जाता है. इस सारी प्रक्रिया के होने के बाद अब वैज्ञानिक इंतजार करते हैं उस शरीर को समय आने पर वापस जिंदा करने तक का.